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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 18 काव्‍यार्थापत्ति अलंकार पीछे     आगे

 
(अर्थापत्ति , न्‍याय मूलक)
लक्षण :- एक काम भइले जहवाँ बा अन्‍य काम आ के बनि जात।
अपने आप बिना मिहनत के उहवाँ अर्थापत्ति कहात॥
 
उदाहरण (वीर) :-
सुननीं हम कि ब्रह्म राम जी बैठल करें सदा आराम।
आ उनसे प्रेरित हो कर के माया सदा संवारें काम॥
हम बुझनीं कि यू.पी. शासन का बारे में बात कहात।
जहाँ राम से प्रेरित हो के माया काम करें दिन रात॥
'' हार ले आके फूलन के अब सब देवतन के दऽ पहिराइ। ''
एतना बात सुनत गुरू जी के चेला कहि दिहले अकुलाइ॥
फूलन के निवास दिल्‍ली में बा जहवाँ पहरा बरियार।
आ फूलन का गर में होई सोना या मोती के हार॥
कइसे ऊ हमरा के दीहें अपना गर से हार ?।
कइसे हार मिली फूलन के रउरे मन में करीं बिचार ?॥
यदि पुलिंग शब्‍दन का आगे सिंह शब्‍द चलि आवेला।
तब ओके ओकरा सुजाति के सब से श्रेष्‍ठ बनावेला॥
सजी श्रेष्‍ठ जन का नरसिंह कहावे के अधिकार हवे।
किंतु राव समुझेले कि ई केवल नाम हमार हवे॥
जे सेनापति आ केशव कवि के पढि़ जाई कविताई।
ऊ का जाई पढ़े दोसरा कवि लोगन के कविताई॥
 
दोहा :- सींग दाँत नख तीन जे निकसत निज तन फारि।
ऊ काहेंना आन के दी तन फारि बिगारि॥
बछरू दी गइया जवन दूधो दी कुछ मास।
ई ध्रुव कहात बा करी सभें विश्‍वास॥
मारि दिहल गइले जहाँ गाँधी आ सुकरात।
त केकर जीवन बा इहाँ खतरा में न दिखात॥
 
 


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